पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर मध्यप्रदेश Pashupatinath Temple Mandsaur M.P. :-
भारत में मध्यप्रदेश राज्य के एक पवित्र जिले मंदसौर नगर में शिवना नदी के तट पर बना अष्टमुखी पशुपतिनाथ भगवान का भव्य मंदिर शहर के धार्मिक स्थलों में एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है । विश्व में अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ जी की यह एकमात्र प्रतिमा है। जिसका सौंदर्य अपने आप में अनूठा है। नेपाल के पशुपतिनाथ में प्रतिमा चार मुख की है, जबकि मंदसौर की यह प्रतिमा अष्टमुखी है।
मनोकामना अभिषेक:-
पशुपतिनाथ मंदिर में सभी भक्तजनों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती है यहाँ हर वर्ष हज़ारों की संख्या में मनोकामना अभिषेक किये जाते है जो कि कई वर्षों से अनवरत चल रहे है इसलिए इन्हे मनोकामना पूर्ण करने वाले पशुपतिनाथ महादेव के नाम से भी जाना जाता है मंदिर में प्रतिदिन हज़ारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है, हर वर्ष यहाँ पर दीपावली के बाद कार्तिक माह में एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है
भगवान पशुपतिनाथ महादेव शिवना स्नान:-
हर वर्ष वर्षा काल में एक बार भगवान पशुपतिनाथ महादेव शिवना स्नान जरूर करते है, माँ शिवना का जल मंदिर में प्रवेश कर जाता है और पशुपतिनाथ भगवान् के आठों मुख जलमग्न हो जाते है यह दर्शन दृश्य अपने आप में एक आनंद का अद्भुद सौन्दर्य हैं।
भगवान पशुपतिनाथ लोक:-
उज्जैन में स्थित महाकाल लोक की तर्ज पर मंदसौर में स्थित भगवान पशुपतिनाथ लोक के लिए भी प्रदेश सरकार ने 25 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं।
मप्र पर्यटन विकास निगम को इसकी निर्माण एजेंसी बनाया गया हैं।
पशुपतिनाथ भगवान की प्रतिमा कलाकार की अनुपम कृति:-
पशुपतिनाथ भगवान की यह प्रतिमा किसी अज्ञात कलाकार की अनुपम कृति है जिसका उद्गम स्थल माँ शिवना है। इस प्रतिमा के 8 सिर हैं, पहला भाग 4 शीर्ष पर और दूसरा भाग 4 शीर्ष तल में, शीर्ष पर 4 सिर स्पष्ट, परिष्कृत और पूर्ण हैं जबकि नीचे के चार मुख अज्ञात कलाकार द्वारा निर्माणाधीन अवस्था में रह गए थे।
2.5 × 3.20 मी. आकर की इस प्रतिमा का वजन लगभग 46 क्विंटल, 65 किलो, 525 ग्राम है
भगवान पशुपतिनाथ के 8 मुख है जो जीवन की 4 अवस्थाओं का वर्णन करते हैं. पूर्व मुख बाल्यवस्था का, दक्षिण मुख किशोरावस्था का, पश्चिम मुख युवावस्था का और उत्तर मुख प्रौढ़ा अवस्था के रूप में दिखाई देता है।
प्रतिमा की खोज एवं प्रतिष्ठा:-
इस प्रतिमा की खोज जून, 1940 को श्री उदाजी कालूजी धोबी (फगवार) जी ने की थी, उन्होंने इस प्रतिमा को पहली बार चिमन चिश्ती की दरगाह के सामने शिवना नदी के गर्भ में दबी हुई अवस्था में देखा था। 19 जून, 1940को शिवना नदी से जन सहयोग द्वारा प्रतिमा को निकाल कर श्री तापेश्वर महादेव घाट पर नीम के वृक्ष के नीचे 23 जून, 1940 रविवार को रखा गया। बाबू शिवदर्शनलाल अग्रवाल जी का भी प्रतिमा को सुरक्षित, सरंक्षित एवं स्थापना को लेकर महत्वपूर्ण योगदान रहा।
21 वर्ष, 5 माह 3 दिन के पश्चात् सन 1961 में
अवधूत श्री चैतन्यदेव (मेनपुरिया आश्रम) के सुयोग्य शिष्य स्वामी श्री 1008 प्रत्यक्षानन्द जी कालूखेड़ा वाले स्वामी जी के सद्प्रयासों से ही श्री तापेश्वर महादेव घाट पर श्री लोकमहेश्वर पंचकुण्डात्मक महायज्ञ की पूर्णाहुति हुई तथा इसी दिन 23 नवम्बर,1961 को इस प्रतिमा की वर्तमान स्थल पर प्रतिष्ठा हुई।
प्रतिमा का नामकरण:-
27 नवम्बर,1961 सोमवार को प्रतिमा का नामकरण धर्मप्रेमियों के मध्य स्वामी जी द्वारा “श्री पशुपतिनाथ महादेव “ किया गया। पशुपतिनाथ भगवान् के आठों मुखों का नामकरण भगवान शिव के अष्ट तत्वों के अनुसार है।
हर मुख के भाव एवं जीवन काल भी भिन्न- भिन्न हैं।
1. शर्व, 2. भव, 3. रुद्र, 4. उग्र, 5. भीम, 6. पशुपति, 7. ईशान और 8. महादेव।
पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर तक कैसे पहुंचें:-
सड़क मार्ग के द्वारा:-
यह मार्ग सड़क के माध्यम से लगभग सभी क्षेत्रों से सुगमता से पशुपतिनाथ मंदिर तक पहुंच बनाता है मंदसौर बस स्टॉप से मंदिर की दुरी 3 किलो मीटर हैं|
ट्रेन मार्ग के द्वारा:-
मंदसौर जिले के अलावा समीप मे स्थित रेल्वे स्टेशन शामगढ़, नीमच और रतलाम के मध्य आने वाले सभी स्टेशन हैं|
हवाई केमार्ग:-
मंदसौर जिले मे वर्तमान तक कोई भी एयरपोर्ट नहीं हैं किन्तु नजदीकी एयरपोर्ट उदयपुर और इंदौर हैं |
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