ज्वार भाटा (Tide)
सूर्य एवं चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों से पृथ्वी पर स्थित सागरीय जल के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने को ज्वार-भाटा कहत है। इससे उत्पन्न सागरीय तरंगों को ज्वारीय तरंगें कहते हैं। विभिन्न स्थानों पर ज्वार भाटा की स्थति में पर्याप्त भिन्नता होती। जो ऊँचाई, गहराई तथा तट के साथ-साथ सागर के खुले और बंद होने पर निर्भर होता है। हालाँकि सूर्य, चंद्रमा से आकार में बहुत बड़ा होता है किन्तु पृथ्वी से सूर्य चन्द्रमा की तुलना में दूर है अतः चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति दो गुनी है 24 घंटे में हर एक स्थान पर दो बार ज्वारभाटा आता है ।
दीर्घ ज्वार :-
जब सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा। एक सीधी रेखा में हो तो इनकी सम्मिलित शक्ति के परिणाम स्वरुप दीर्घ ज्वार आता है और यह स्थति सिजगि कहलाती है ऐसा पूर्णमासी व अमावस्या को होता है।
निम्न ज्वार :-
इसके ठीक विपरीत जब सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा आपस में मिलकर समकोण बनाते है, तो चंद्रमा व सूर्य का आकर्षण बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करता है फलस्वरूप निम्न ज्वार आता है। ऐसी स्थिति कृष्णपक्ष एवं शुक्लपक्ष की सप्तमी व अष्टमी को बनती है ।
कनाडा के न्यूब्राउनश्विक एवं नोवा स्कोशिया के मध्य स्थित फ़ंडी की खाड़ी में ज्वार की ऊँचाई सर्वाधिक रहती है, लगभग 18 मीटर जबकि भारत के ओखा तट पर यह ऊँचाई होती है लगभग 2.7 मी.।
इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथैम्पटन में प्रतिदिन चार बार ज्वार आते है क्योंकि। यह दो बार इंग्लिश चैनल और दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न अंतरालों पर वहाँ पहुँचता है।
महत्त्व :-
- ज्वार नदियों में बड़े जलयानों को नौसंचालन योग्य बनाने में सहायक होते।
- जल विद्युत उत्पादन हेतु भी इस ऊर्जा का प्रयोग किया जा सकता। भारत में भी इसकी अच्छी सम्भावना है जैसे खम्बात की खाड़ी,कच्छ की खाड़ी आदि।
- बड़े पत्तनों का विकास भी ज्वारीय धाराओं के कारण ही संभव हुआ है जैसे लन्दन, कोलकाता आदि।